नेहरू युवा केन्द्र संगठन द्वारा किया जाएगा युवा संवाद-भारत @ 2047’ कार्यक्रम का आयोजन*.

पंचकूला, 20 मार्च- प्रधान मंत्री की प्रेरणा और मार्गदर्शन से , भारत आजादी का अमृत महोत्सव- स्वतंत्रता के 75 वें वर्ष और अपने लोगों, संस्कृति और उपलब्धियों के गौरवशाली इतिहास का जश्न मना रहा है। प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने भी स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर अपने संबोधन में पंच प्रण के मंत्र की घोषणा की थी ; अमृत काल के युग में भारत @ 2047 की एक दृष्टि ।
इस संदर्भ में, युवा कार्यक्रम एवं खेल मंत्रालय, भारत सरकार के जिला स्तरीय नेहरू युवा केन्द्र संगठन (एनवाईकेएस) 1 अप्रैल से 31 मई, 2023 तक देश भर के सभी जिलों में समुदाय आधारित संगठनों (सीबीओ) के माध्यम से ‘युवा संवाद- भारत @2047’ कार्यक्रम का आयोजन करने जा रहा है।
इस संबंध में जानकारी देते हुए नेहरू युवा केन्द्र संगठन , पंचकूला के उपनिदेशक श्री प्रदीप कुमार ने बताया कि, नेहरु युवा केन्द्र, पंचकुला भी युवा संवाद कार्यक्रम का आयोजन करने जा रहा है। पंचकुला जिले के विभिन्न सीबीओ (समुदाय आधारित संगठन) के सहयोग और समर्थन से जिला स्तर पर कार्यक्रम आयोजित करने की योजना है, जो पंच प्रणों के अनुरूप देश के भविष्य पर एक सकारात्मक संवाद उत्पन्न करने के लिए जिला नेहरु युवा केंद्र के साथ हाथ मिलाएंगे।
कार्यक्रम में विशेषज्ञ/ज्ञानी व्यक्ति पंच प्रण पर चर्चा करेंगे और उसके बाद न्यूनतम 500 युवा प्रतिभागियों की भागीदारी के साथ प्रश्नोत्तर सत्र होगा। उन्होंने कहा कि जो सीबीओ आवेदन करना चाहते हैं, वे गैर-राजनीतिक, गैर-पक्षपातपूर्ण इतिहास वाले होंने चाहिए और युवा संवाद कार्यक्रम का संचालन करने के लिए पर्याप्त संगठनात्मक ताकत रखते होने चाहिए व संगठनों के खिलाफ कोई आपराधिक मामला लंबित नहीं होना चाहिए। कार्यक्रमों के आयोजन के लिए प्रति जिले से अधिकतम 3 सीबीओ का चयन किया जाएगा।
उन्होंने कहा कि मानदंडों को पूरा करने वाले पंचकुला के इच्छुक सीबीओ 30 मार्च 2023 तक जिला नेहरू युवा केन्द्र, यमुनानगर से प्राप्त निर्धारित आवेदन प्रपत्र में अपने आवेदन जमा कर सकते हैं। अधिक जानकारी के लिए नेहरु युवा केन्द्र, पंचकुला,102 नाडा साहिब सेक्टर 31 नजदीक मोरनी टी पॉइंट पंचकुला तथा मोबाइल नंबी 9466980646 पर संपर्क किया जा सकता है।

एक दिवसीय राष्ट्रीय सेवा योजना स्वच्छता कैंप का आयोजन

पंचकूला मार्च 20: राजकीय महाविद्यालय कालका की प्राचार्या कामना के कुशल मार्गदर्शन में एक दिवसीय राष्ट्रीय सेवा योजना स्वच्छता कैंप का आयोजन किया गया जिसमें 61 स्वयं सेवकों ने भाग लिया। शिविर में स्वयंसेवक और स्वयं सेविकाओं ने महाविद्यालय परिसर में साफ-सफाई की। शिविर के अंतर्गत छात्र छात्राओं को स्वच्छता के प्रति जागरूक किया गया। स्वंयसेवकों और स्वयं सेविकाओं ने अपने आसपास के पर्यावरण को बचाने की शपथ ली और पौधारोपण कर पृथ्वी पर पर्यावरण संतुलन बनाने का भी वचन दिया । प्रस्तुत शिविर राष्ट्रीय सेवा योजना की प्रभारी डॉ सरिता और प्रोफेसर सोनू के मार्गदर्शन और दिशा निर्देशन में किया गया।

महिला एवं बाल विकास विभाग द्वारा 5वां पोषण पखवाड़ा 3 अप्रैल तक मनाया जाएगा

-तीन प्रमुख बिन्दओं बेहतर स्वास्थ्य के लिए अन्न/मोटा अनाज, सक्षम आंगनवाड़ी केंद्र तथा स्वस्थ बालक स्पर्धा पर रहेगा आधारित इस बार का पोषण पखवाड़ा

-बच्चों और महिलाओं को स्वास्थ्य के प्रति जागरूक करने के लिये आयोजित किये जायेंगे अनेक कार्यक्रम

पंचकूला, 20 मार्च- महिला एवं बाल विकास विभाग द्वारा 5वां पोषण पखवाड़ा 20 मार्च से 3 अप्रैल तक मनाया जाएगा। पोषण पखवाड़ा तीन प्रमुख बिन्दओं पर आधारित रहेेगा।
यह जानकारी देते हुए जिला कार्यक्रम अधिकारी श्रीमती बलजीत कौर ने बताया कि तीन प्रमुख बिन्दओं में बेहतर स्वास्थ्य के लिए अन्न/मोटा अनाज, सक्षम आंगनवाड़ी केंद्र तथा स्वस्थ बालक स्पर्धा शामिल है।
उन्होंने बताया कि पखवाड़े के दौरान बच्चों एवं महिलाओं को खानपान के बारे में जागरूरक करने के लिए अनेक कार्यक्रम किए जाएगे। उन्होंने बताया कि जिला के ग्रामीण एवं शहरी क्षेत्रों में 534 आगंनवाडी केंद्र है, जिसमें खंड बरवाला में 112, पिंजौर में 253, मोरनी में 84 और रायपुररानी में 85, आंगनवाडी केंद्र है।
उन्होंने बताया कि पोषण पखवाड़े के दौरान महिलाओं व बच्चों में कुपोषण को समाप्त करने के लिये एक मिशन मोड में कार्य करने के लिये पोषण शपथ समारोह आयोजित किये जायेंगे। इसके अलावा आंगनवाॅडी केंद्रों में बच्चों की लंबाई और वजन किया जायेगा। साथ ही स्वास्थ्य विभाग के सहयोग से 0 से 6 वर्ष के बच्चों के लिये स्वास्थ्य जांच शिविर/एचबी जांच शिविर लगायें जायेंगे। उन्होंने बताया कि किशोरियों को उनके स्वास्थ्य के प्रति जागरूक करने के उद्देश्य से जागरूकता अभियान चलाये जायेंगे और आंगनवाॅडी कार्यकर्ताओं द्वारा घर-घर जाकर पोषण पर संदेश दिया जायेगा।
श्रीमती बलजीत कौर ने बताया कि मोटे अनाज की महत्वता पर स्वास्थ्य विभाग और खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति विभाग के सहयोग से जिला स्तरीय कार्यशाला का आयोजन किया जायेगा, जिसमें लोगों को मोटे अनाज के फायदों के बारे में जानकारी दी जायेगी। इसके अलावा मोटे अनाज पर महिला गोष्ठियों का आयोजन किया जायेगा।
उन्होंने कहा कि पोषण पखवाड़े के दौरान हरा भरा हरियाणा के तहत संबंधित विभागों के सहयोग से पौधारोपण अभियान, आंगनवाॅडी केंद्रों में स्वच्छता अभियान, अनिमिया की रोकथाम के लिये वेबिनार, स्वस्थ बालक मेला, महिलाओं के लिये पौष्टिक थाली प्रतियोगिता सहित अनेक कार्यक्रम आयोजित किये जायेंगे।

श्री माता मनसा देवी

भारत की सभ्यता एवं संस्कृति आदिकाल से ही विश्व की पथ-प्रदर्शक रही है और इसकी चप्पा-चप्पा धरा को ऋषि मुनियों ने अपने तपोबल से पावन किया है। हरियाणा की पावन धरा भी इस पुरातन गौरवमय भारतीय संस्कृति, धरोहर तथा देश के इतिहास एवं सभ्यता का उदगम स्थल रही है। यह वह कर्म भूमि है, जहां धर्म की रक्षा के लिए दुनिया का सबसे बड़ा संग्राम महाभारत लड़ा गया था और गीता का पावन संदेश भी इसी भू-भाग से गुंजित हुआ है। वहीं शिवालिक की पहाडिय़ों से लेकर कुरूक्षेत्र तक के 48 कोस के सिंधुवन में ऋषि-मुनियों द्वारा पुराणों की रचना की गई और यह समस्त भूभाग देवधरा के नाम से जाना जाता है।
इसी परम्परा में हरियाणा के जिला पंचकूला में ऐतिहासिक नगर मनीमाजरा के निकट शिवालिक पर्वत मालाओं की गोद में सिन्धुवन के अतिंम छोर पर प्राकृतिक छटाओं से आच्छादित एकदम मनोरम एवं शांति वातावरण में स्थित है – सतयुगी सिद्घ माता मनसा देवी का मंदिर। कहा जाता है कि यदि कोई भक्त सच्चे मन से 40 दिन तक निरंतर मनसा देवी के भवन में पहुंच कर पूजा अर्चना करता है तो माता मनसा देवी उसकी मनोकामना अवश्य पूर्ण करती है। माता मनसा देवी का चौत्र और आश्विन मास के नवरात्रों में मेला लगता है।
माता मनसा देवी के मंदिर को लेकर कई धारणाएं व मान्यताएं प्रचलित हैं। श्री माता मनसा देवी का इतिहास उतना ही प्राचीन है, जितना कि अन्य सिद्घ शक्तिपीठों का। इन शक्ति पीठों का कैसे और कब प्रादुर्भाव हुआ इसके बारे में शिव पुराण में विस्तृत वर्णन मिलता है। धर्म ग्रंथ तंत्र चूड़ामणि के अनुसार ऐसे सिद्घ पीठों की संख्या 51 है, जबकि देवी भागवत पुराण में 108 सिद्घ पीठों का उल्लेख मिलता है, जो सती के अंगों के गिरने से प्रकट हुए। श्री माता मनसा देवी के प्रकट होने का उल्लेख शिव पुराण में मिलता है। माता पार्वती हिमालय के राजा दक्ष की कन्या थी व अपने पति भगवान शिव के साथ कैलाश पर्वत पर उनका वास था। कहा जाता है कि एक बार राजा दक्ष ने अश्वमेध यज्ञ रचाया और उसमें सभी देवी-देवताओं को आमंत्रित किया गया, परन्तु इसमें भगवान शिव को नहीं बुलाया, इसके बावजूद भी पार्वती ने यज्ञ में शामिल होने की बहुत जिदद की। महादेव ने कहा कि बिना बुलाए वहां जाना नहीं चाहिए और यह शिष्टाचार के विरूद्घ भी है। अन्त मे विवश होकर मां पार्वती का आग्रह शिवजी को मानना पड़ा। शिवजी ने अपने कु छ गण पार्वती की रक्षार्थ साथ भेजे। जब पार्वती अपने पिता के घर पहुंची तो किसी ने उनका सत्कार नहीं किया। वह मन ही मन अपने पति भगवान शंकर की बात याद करके पश्चाताप करने लगी। हवन यज्ञ चल रहा था। यह प्रथा थी कि यज्ञ में प्रत्येक देवी देवता एवं उनके सखा संबंधी का भाग निकाला जाता था। जब पार्वती के पिता ने यज्ञ से शिवजी का भाग नहीं निकाला तो पार्वती को बहुत आघात लगा। आत्म सम्मान के लिए गौरी ने अपने आपको यज्ञ की अग्नि में होम कर दिया। पिता दक्ष प्रजापति के यज्ञ में प्राणोत्सर्ग करने के समाचार को सुन शिवजी बहुत क्रोधित हुए और वीरभद्र को महाराजा दक्ष को खत्म करने के लिए आदेश दिए। क्र ोध में वीरभद्र ने दक्ष का मस्तक काटकर यज्ञ विघ्वंस कर डाला। शिवजी ने जब यज्ञ स्थान पर जाकर सती का दग्ध शरीर देखा तो सती-सती पुकारते हुए उनके दग्ध शरीर को कंधे पर रखकर भ्रान्तचित से तांडव नृत्य करते हुए देश देशातंर में भटकने लगे।
भगवान शिव का उग्र रूप देखकर ब्रहमा आदि देवताओं को बड़ी चिंता हुई। शिवजी का मोह दूर करने के लिए सती की देह को उनसे दूर करना आवश्यक था, इसलिए भगवान विष्णु ने सुदर्शन चक्र से लक्ष्यभेद कर सती के शरीर को खंड-खंड कर दिया। वे अंग जहां-जहां गिरे वहीं शक्तिपीठों की स्थापना हुई और शिव ने कहा कि इन स्थानों पर भगवती शिव की भक्ति भाव से आराधना करने पर कुछ भी दुलर्भ नहीं होगा क्योंकि उन-उन स्थानों पर देवी का साक्षात निवास रहेगा। हिमाचल प्रदेश के कांगडा के स्थान पर सती का मस्तक गिरने से बृजेश्वरी देवी शक्तिपीठ, ज्वालामुखी पर जिव्हा गिरने से ज्वाला जी, मन का भाग गिरने से छिन्न मस्तिका चिन्तपूर्णी, नयन से नयना देवी, त्रिपुरा में बाई जंघा से जयन्ती देवी, कलकत्ता में दाये चरण की उंगलियां गिरने से काली मदिंर, सहारनपुर के निकट शिवालिक पर्वत पर शीश गिरने से शकुम्भरी, कुरूक्षेत्र में गुल्फ गिरने से भद्रकाली शक्ति पीठ तथा मनीमाजरा के निकट शिवालिक गिरिमालाओं पर देवी के मस्तिष्क का अग्र भाग गिरने से मनसा देवी आदि शक्ति पीठ देश के लाखों भक्तों के लिए पूजा स्थल बन गए हैं।
एक अन्य दंत कथा के अनुसार मनसा देवी का नाम महंत मंशा नाथ के नाम पर पडा बताया जाता है। मुगलकालीन बादशाह सम्राट अकबर के समय लगभग सवा चार सौ वर्ष पूर्व बिलासपुर गांव में देवी भक्त महंत मन्शा नाथ रहते थे। उस समय यहां देवी की पूजा अर्चना करने दूर-दूर से लोग आते थे। दिल्ली सूबे की ओर से यहां मेले पर आने वाले प्रत्येक यात्री से एक रुपया कर के रूप में वसूल किया जाता था। इसका मंहत मनसा नाथ ने विरोध किया। हकूमत के दंड के डर से राजपूतों ने उनके मदिंर में प्रवेश पर रोक लगा दी। माता का अनन्य भक्त होने के नाते उसने वर्तमान मदिंर से कुछ दूर नीचे पहाडों पर अपना डेरा जमा लिया और वहीं से माता की पूजा करने लगा। महंत मंशा नाथ का धूना आज भी मनसा देवी की सीढियों के शुरू में बाई ओर देखा जा सकता है।
आईने अकबरी में यह उल्लेख मिलता है कि जब सम्राट अकबर 1567 ई. में कुरूक्षेत्र में एक सूफी संत को मिलने आए थे तो लाखों की संख्या में लोग वहां सूर्य ग्रहण पर इकटठे हुये थे। महंत मंशा नाथ भी संगत के साथ कुरूक्षेत्र में स्नान के लिये गये थे। कहते हैं कि जब नागरिकों एवं कुछ संतों ने अकबर से सरकार द्वारा यात्रियों से कर वसूली करने की शिकायत की तो उन्होंने हिंदुओं के प्रति उदारता दिखाते हुए सभी तीर्थ स्थानों पर यात्रियों से कर वसूली पर तुरंत रोक लगाने का हुकम दे दिया, जिसके फलस्वरूप कुरूक्षेत्र एवं मनसा देवी के दर्शनों के लिए कर वसूली समाप्त कर दी गई।
श्री माता मनसा देवी के सिद्घ शक्तिपीठ पर बने मदिंर का निर्माण मनीमाजरा के राजा गोपाल सिंह ने अपनी मनोकामना पूरी होने पर लगभग पौने दो सौ वर्ष पूर्व चार वर्षाे में अपनी देखरेख में सन 1815 ईसवी में पूर्ण करवाया था। मुख्य मदिंर में माता की मूर्ति स्थापित है। मूर्ति के आगे तीन पिंडीयां हैं, जिन्हें मां का रूप ही माना जाता है। ये तीनों पीडिंया महालक्ष्मी, मनसा देवी तथा सरस्वती देवी के नाम से जानी जाती हैं। मंदिर की परिक्रमा पर गणेश, हनुमान, द्वारपाल, वैष्णवी देवी, भैरव की मूर्तियां एवं शिव लिंग स्थापित है। इसके अतिरिक्त श्री मनसा देवी मंदिर के प्रवेश द्वार पर माता मनसा देवी की विधि विधान से अखंड ज्योत प्रज्जवलित कर दी गई है। इस समय मनसा देवी के तीन मंदिर हैं, जिनका निर्माण पटियाला के महाराज द्वारा करवाया गया था। प्राचीन मदिंर के पीछे निचली पहाडी के दामन में एक ऊंचे गोल गुम्बदनुमा भवन में बना माता मनसा देवी का तीसरा मदिंर है। मदिंर के एतिहासिक महत्व तथा मेलों के उपर प्रति वर्ष आने वाले लाखों श्रद्घालुओं को और अधिक सुविधाएं प्रदान करने के लिए हरियाणा सरकार ने मनसा देवी परिसर को 9 सितम्बर 1991 को माता मनसा देवी पूजा स्थल बोर्ड का गठन करके इसे अपने हाथ मे ले लिया था।
श्री माता मनसा देवी की मान्यता के बारे पुरातन लिखित इतिहास तो उपलब्ध नहीं है, परन्तु पिंजौर, सकेतडी एवं कालका क्षेत्र में पुरातत्ववेताओं की खोज से यहां जो प्राचीन चीजे मिली हैं, जो पाषाण युग से संबंधित है उनसे यह सिद्घ होता है कि आदिकाल में भी इस क्षेत्र में मानव का निवास था और वे देवी देवताओं की पूजा करते थे, जिससे यह मान्यता दृढ होती है कि उस समय इस स्थान पर माता मनसा देवी मदिंर विद्यमान था। यह भी जनश्रुति है कि पांडवों ने बनवास के समय इस उत्तराखंड में पंचपूरा पिंजौर की स्थापना की थी। उन्होंने ही अन्य शक्तिपीठों के साथ-साथ चंडीगढ के निकट चंडीमदिंर, कालका में काली माता तथा मनसा देवी मदिंर में देवी आराधाना की थी। पांडवों के बनवास के दिनों में भगवान श्री कृष्ण के भी इस क्षेत्र में आने के प्रमाण मिलते हैं। त्रेता युग में भी भगवान द्वारा शक्ति पूजा का प्रचलन था और श्री राम द्वारा भी इन शक्ति पीठों की पूजा का वर्णन मिलता है।
हरिद्वार के निकट शिवालिक की ऊंची पहाडियों की चोटी पर माता मनसा देवी का एक और मदिंर विद्यमान है, जो आज देश के लाखों यात्रियों के लिये अराध्य स्थल बना हुआ है, परन्तु उस मदिंर की गणना 51 शक्तिपीठों में नहीं की जाती। पंचकूला के बिलासपुर गांव की भूमि पर वर्तमान माता मनसा देवी मदिंर ही सिद्घ शक्ति पीठ है, जिसकी गणना 51 शक्ति पीठों में होने के अकाट्य प्रमाण हैं। हरिद्वार के निकट माता मनसा देवी के मदिंर के बारे यह दंत कथा प्रसिद्घ है कि यह मनसा देवी तो नागराज या वासुकी की बहिन, महर्षि कश्यप की कन्या व आस्तिक ऋषि की माता तथा जरत्कारू की पत्नी है, जिसने पितरों की अभिलाषा एवं देवताओं की इच्छा एवं स्वयं अपने पति की प्रतिज्ञा को पूर्ण करने तथा सभी की मनोकामना पूर्ण करने के लिए वहां अवतार धारण किया था, सभी की मनोकामना पूर्ण करने के कारण अपने पति के नाम वाली जरत्कारू का नाम भक्तों में मनसा देवी के रूप में प्रसिद्घ हो गया। वह शाक्त भक्तों में अक्षय धनदात्रि, संकट नाशिनी, पुत्र-पोत्र दायिनी तथा नागेश्वरी माता आदि नामों से प्रसिद्घ है।

महाकाली मंदिर (कालका)

प्राचीन काल में शिवालिक को शालवगिरी कहा जाता था। उत्तरी भारत का सुप्रसिद्ध ऐतिहासिक महाकाली (माता) का प्राचीन मंदिर यहां कालका में शिवालिक गिरीमालाओं में बना हुआ है।
पहले पहल कालका जिला अंबाला का तहसील मुख्यालय था जो अंबाला-शिमला राष्ट्रीय राजमार्ग पर स्थित है। यहा हिमाचल प्रदेश का प्रवेश द्वार है। कालका का वर्तमाल क्षेत्र तत्कालीन पटियाला रियासत का भाग था परंतु अंग्रेजों ने सन् 1846 में इस पर कब्जा कर के इसको जिला शिमला में शामिल कर दिया था। 1899 में कालका को जिला अंबाला में शामिल कर दिया गया और इसके पश्चात 15 अगस्त 1995 को पंचकूला को जिले का दर्जा दिये जाने पर जिला पंचकूला में शामिल कर दिया गया।
एक पढत कथा अनुसार जब इस कस्बे में महाकाली का मंदिर स्थापित हुआ था तो इस कस्बे को पहले कालीकूट, फिर कालका के नाम से जाना जाने लगा था, जो बाद में कालका हो गया। वैसे तो यहां पर देवी-देवताओं के कई धार्मिक स्थल हैं लेकिन महाकाली का मंदिर विशेष महत्व रखता है। भारतवासियों की शक्ति पूजन में आदिकाल से ही गहरी आस्था रही है। महाकाी के प्राचीन मंदिर में देवी की पावन पिण्डी मौजूद है, जिस पर चांदी के छतर की छाया हर वक्त रहती है। मंदिर दमें मां के दर्शन पिंडी के रूप में किए जाते हैं। वैसे तो यहां पर देवी-देवताओं के स्थल हैं परंतु महाकाली का मंदिर विशेष महत्व रखता है। मंदिर का भवन अभी भी पत्थर के बड़े-बड़े स्तंभों, पत्थर की चौखट और पत्थर की कडियों पर टिका हुआ है। मंदिर का मुख्य द्वार भी पत्थर की चौखट का बना हुआ है जो प्राचीन काल की याद दिलाता है।
पौराणिक कथा के अनुसार यक्ष प्रतापति की पुत्री हवनकुंड में कूद गई और सती बन गई। इस दुर्घटना का समाचार पाकर भगवान शिव व्याकुल अवस्था में सती के शव को अपने कंधों पर उठाए उन्माद अवस्था में यत्र-तत्र भटकने लगे। शिव को इस शव से मुक्ति दिलाने के लिए भगवान विष्णु ने अपने धनुष से शव को विखण्डित करना शुरू कर दिया। इस प्रकार शव के जो अंग जिन-जिन स्थानों पर गिरे उन स्थानों पर मां शक्ति के तीर्थ स्थान बन गए। जैसे सहारनपुर के पास शिवालिक पर्वत पर शीश गिरने सवे शाकुंभरी देवी, कराची में हाथ गिरने से हिंगलाज देवी, चण्डीगढ के पास मनीमाजरा की शिवालिक पहाडिय़ों पर मस्तक गिरने से मनसादेवी और कालका में सती के केश गिरने से महाकाली के मंदिर बने।
एक अन्य कथा में बताया जाता है कि जब मार्कण्डेय पुराण की देवी महिषासुर के वध के लिए प्रकट हुई और जब महिषासुर का सामाना इस देवी से हुआ तो यह देख कर वह दंग रह गा कि देवी अपने पांव से पृथ्वी को पाताल में दबा रही थी और अपने मुकुट से आकाश को छू रखा था। देवी ने महिषासुर राक्षस का वध कर दिया। देवी के इस रूप को मां के समान माना गया है जो सभी की रक्षा करती है और अपराध करने वालों को दण्ड देती है। दंत कथा के अनुसार यह देवी महिषासुर का वध कर के यहां समा गई थी तभी से यह स्थल महाकाली माता के नाम से प्रचलित हुआ।
सतयुग में इस भूमि का नाम सिंधु वन से प्रसिद्ध था। तत्पश्चात हिमाचल नाम का प्रतापी राजा हुए और इउसके नाम से इसका नाम हिमाचल पड़ा जो अन्य राज्यों के विवाद होने के कारण राज्य विभाजन हुए। आज यह भाग हरियाणा में स्थित है।
द्वापर युग में जब पाण्डव जुए में हारे तो उन्हें बारह वर्ष का बनवास तथा एक वर्ष का अज्ञातवास मिला था। पाण्डवों ने अपने अज्ञातवास के 12 माह राजा विराट के राज दरबार में कौरवों से सुरक्षा के लिए नौकरी करके व छिपकर बिताए थे। राजा विराट के पास एक श्यामा गाय थी जो बहुत ही सुंदर एवं दूध देने वाली थी और वह राजा को बहुत प्रिय थी। कुछ समय पश्चात श्यामा गाय के बारे में यह बात फैल गई कि श्यामा गाय ने दूध देना बंद कर दिया है। जब यह समाचार राजा विराट के कानों तक पहुंचा तो उसने अपने धर्नुधरी पाण्डव पुत्र अर्जुन श्यामा गाय के पीछे-पीछे भेजा। वन में कुछ दूरी पर जाने के पश्चात श्यामा गाय एक स्थान पर रुक गई और उसका दूध स्वयं चलना आरंभ हो गया। अर्जुन ने देखा कि श्यामा गाय अपने दूध से माता जी की पिण्डी का अभिषेक कर रही है। वह बहुत प्रसन्न हुए और वह जान गए कि श्यामा गांच नित प्रतिदिन मां काली की पिण्डी का अभिषेक अपने दूध से करती है। तत्पश्चात पांचों पाण्डवों ने हर्ष एवं उत्साह के सज्ञथ वैदिक विधि से महाकाली की पिण्डी की पूजा अर्चना आरंभ कर दी और इस मंदिर की स्थापना की। तभी से माता के मंदिर की ख्याति बढती रही जो कि काली माता के नाम से प्रसिद्ध है। इसके पश्चात जितने भी राजा महाराजा हुए, इस मंदिर का जीर्णाेद्धार कराते रहे।
यहां पर वर्ष में दो बार दशहरा व रामनवमी के अवसर पर भारी मेला लगता है, लेकिन चैत्र के नवरात्रों में अष्टमी के दिन मेला काफी अधिक भरता है। हजारों की तादाद में भिन्न जातियों के लोग अपनी मुरादें हासिकल करते हैं। काली माता के मंदिर के पास एक बावड़ी है। कालका निवासियों के पीने के पानी का समाधान इस पवित्र बावड़ी के जल में होता है।

* 22 मार्च से शुरू हो रहे चैत्र नवरात्र मेले के आयोजन की सभी तैयारियां पूरी- उपायुक्त*

*-तीनों मंदिरों में 22 मार्च से 25 मार्च तक प्रातः 4 बजे से रात्रि 11 बजे तक और 26 से 30 मार्च तक प्रातः 3 बजे से रात्रि 12 बजे तक श्रद्धालु कर सकेंगे माता के दर्शन*

*-बुजुर्ग, दिव्यांग और गर्भवती महिलाओं को लिफ्ट के माध्यम से दर्शन करने की सुविधा करवाई गई उपलब्ध*

*बोर्ड द्वारा श्रद्धालुओं की सुरक्षा के दृष्टिगत करवाया गया है बीमा *

पंचकूला, 20 मार्च- उपायुक्त एवं श्रीमाता मनसा देवी श्राईंन बोर्ड के मुख्य प्रशासक श्री महावीर कौशिक ने बताया कि 22 मार्च से शुरू हो रहे चैत्र नवरात्र मेले के आयोजन की सभी तैयारियां पूरी कर ली गई है। हर वर्ष की भांति इस वर्ष भी मेले में देश प्रदेश से लाखों श्रद्धालु माता के दर्शन कर आशीर्वाद लेंगे।
उन्होंने बताया कि माता के दर्शन के लिये आने वाले श्रद्धालुओं की सुविधा के लिये श्राईंन बोर्ड द्वारा विशेष प्रबंध किये गये है। बुजुर्ग, दिव्यांग और गर्भवती महिलाओं के लिये वीआईपी गेट से लिफ्ट के माध्यम से दर्शन करने की सुविधा उपलब्ध करवाई गई है।
श्री महावीर कौशिक ने बताया कि श्रद्धालु माता मनसा देवी मंदिर, काली माता मंदिर कालका और चंडीमाता मंदिर में 22 मार्च से 25 मार्च तक प्रातः 4 बजे से रात्रि 11 बजे तक और 26 से 30 मार्च तक प्रातः 3 बजे से रात्रि 12 बजे तक माता के दर्शन कर सकेंगे। उन्होंने कहा कि माता मनसा देवी मंदिर में श्रद्धालुओं के लिये प्रतिदिन सांस्कृतिक संध्या का आयोजन किया जायेगा, जिसमें कलाकारों द्वारा धार्मिक भजनों की प्रस्तुति दी जायेगी। उन्होंने बताया कि बुजुर्गों, दिव्यांगों और महिलाओं के लिए माता मनसा देवी मंदिर परिसर स्थित अस्थाई बस स्टैंड से पटियाला मंदिर तक और जटायु यात्रिका से वीआईपी गेट तक निशुल्क ई-रिक्शा की व्यवस्था की गई है। उन्होंने बताया कि बोर्ड द्वारा मेले में आने वाले श्रद्धालुओं की सुरक्षा के दृष्टिगत उनका बीमा भी करवाया गया है जिसके तहत यदि हादसे में किसी की मृत्यु हो जाती है तो उसके आश्रितों को 1 लाख रूपए की सहायता राशि प्रदान की जाएगी और घायल होने पर 50 हजार रूपए तक की राशि दी जाएगी।
श्रीमाता मनसा देवी श्राईंन बोर्ड के मुख्य कार्यकारी अधिकारी श्री अशोक कुमार बंसल ने बताया कि माता के दर्शन निशुल्क हैं और कोई भी श्रद्धालु कतार में लगकर माता के दर्शन कर सकता है। उन्होंने बताया कि ऐसे श्रद्धालु जो एक निश्चित दिन और समय पर माता के दर्शन करने के इच्छुक हैं वे बोर्ड की वेबसाईट http://www.mansadevi.org.in पर स्लाॅट बुक कर 500 रूपए की स्वैछिक दान राशि से दर्शन कर सकते हैं। इसके अलावा वे आॅफलाईन माध्यम से भी मंदिर परिसर में विभिन्न स्थानों पर स्थापित डोनेशन काउंटरों के माध्यम से दर्शन की सुविधा का लाभ ले सकते हैं। उन्होंने कहा कि यह सुविधा पूर्ण रूप से स्वैच्छिक है।

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