आंगनवाड़ी सेविकाओं और सहायिकाओं को सुरक्षा, न्यूनतम वेतन और पेंशन प्रदान करने हेतु प्रधान मंत्री के नाम उपायुक्त गुड़गाँव के माध्यम से ज्ञापन दिया।

गुड़गाँव 10 जुलाई 2020

अखिल भारतीय मांग दिवस के रूप में आज गुड़गाँव की आंगनवाड़ी वर्कर्ज एंड हेल्पर्ज यूनियन ने आई सी डी एस के लिए आर्थिक आवंटन बढ़ाने, आंगनवाड़ी सेविकाओं और सहायिकाओं को सुरक्षा, न्यूनतम वेतन और पेंशन प्रदान करने हेतु प्रधान मंत्री के नाम उपायुक्त गुड़गाँव के माध्यम से ज्ञापन दिया।

मांग दिवस की अध्यक्षता सुशीला देवी ने तथा संचालन यूनियन की सचिव सरस्वती ने किया। मांगों के समर्थन में सी आई टी यू के ज़िला सह सचिव एस एल प्रजापति ने संगठन की तरफ से बोलते हुये कहा की अखिल भारतीय आंगनवाड़ी सेविका एवं सहायिका फैडरेशन (आइफा) के अंतर्गत आंगनवाड़ी कर्मी पूरे देश में कोरोना महामारी के खिलाफ लड़ाई में अग्रिम पंक्ति के कार्यकर्ताओं का एक बड़ा हिस्सा हैं, मगर समाज में जिस जिस काम को इन्हें करने का जिम्मा है उन मुद्दों पर सरकार का ध्यान बिलकुल नहीं है। भूख और कुपोषण से निजात इनके कुछ बेहद महत्वपूर्ण मुद्दे हैं, जिनपर सरकार द्वारा तत्काल हस्तक्षेप की आवश्यकता है।

यूनिसेफ की हालिया रिपोर्ट का हवाला देते हुये एस एल प्रजापति ने कहा कि हमारे देश में अगले छह महीनों में पांच साल से कम उम्र के तीन लाख बच्चे गरीबी, भुखमरी और कुपोषण के कारण अपनी जानें गंवा देंगे, यदि इस मुद्दे को तत्काल संबोधित नहीं किया जाएगा तो हमारे बच्चों की यह भारी संख्या, जो लगभग 8.8 लाख है, जिनकी उम्र 5 साल से कम है, हर साल मर जाते हैं, इन बच्चों की स्थिति लाॅकडाउन होने और लाॅकडाउन के कारण आंगनवाड़ी केंद्र बंद होने के कारण और भी दयनीय हो गई है। सबसे पहले, देश के कई हिस्सों में, आंगनवाड़ी केंद्रों में जो राशन पहुचाया जा रहा है उसकी गुणवत्ता बहुत खराब और मात्रा बहुत कम है और कई स्थानों पर आपूर्ति महीनों तक नहीं हो पाती। जबकि आंगनवाड़ी सेविकाएं और सहायिकाएं, जब भी और जहाँ भी पोषाहार उपलब्ध कराया जाता है, वहां प्रत्येक लाभार्थी के घर तक पोषाहार पहुँचती हैं। मगर बच्चों और गर्भवती महिलाओं और स्तनपान कराने वाली माताओं को पोषण की आवश्यक मात्रा नहीं मिलती है। परिवारों में गरीबी और भूखमरी व्याप्त है। इसलिए, आंगनवाड़ी केंद्रों में पूरक पोषण की मात्रा और गुणवत्ता में वृद्धि की तत्काल आवश्यकता है। राष्ट्रीय पोषण मिशन के अध्यक्ष होने के नाते प्रधान मंत्री का दायित्व है की हैं, इस कमी तो तत्परता से दूर कर आंगनवाड़ी केन्द्रों में आवश्यक सामाग्री तुरंत पहुंचाई जाए।

यूनियन कि प्रधान सरस्वती ने कहा कि इस चुनौतीपूर्ण समय के दौरान आईसीडीएस, एमडीएमएस और

एनएचएम जैसी बुनियादी सेवाओं की योजनाएं लोगों के जीवन को काफी हद तक बचा रही हैं और

योजनाकर्मी जिनमें आंगनवाड़ी, आशा और एमडीएम कार्यकर्ता शामिल हैं, जिनकी संख्या करीब साठ

लाख हैं और लगभग सभी महिलाएं हैं, जिन्हें आपकी सरकार श्रमिक का दर्जा देने के लिए तैयार

नहीं है, अभी तक बुनियादी सेवाओं का विस्तार करने और महामारी और गरीबी से लड़ने के लिए

सबसे विश्वसनीय स्त्रोत हैं। यह सबसे सही समय है कि इन योजनाओं को स्थायी बनाया जाए और

योजना कर्मियों को श्रमिक के रूप में मान्यता देने के साथ साथ न्यूनतम वेतन, सामाजिक सुरक्षा और पेंशन का प्रावधान करते हुये 45 वीं आईएलसी की सिफारिशें लागू की जाएं।

सरस्वती ने आगे कहा कि लगभग सभी राज्यों में आंगनवाड़ी सेविकाएं और सहायिकाएं कोविड 19 महामारी के दौरान लोकडाउन होने के कारण पूरक पोषाहार की आपूर्ति के लिए डोर टू डोर पहुँचने में लगी हुई हैं, सुरक्षा उपायों के लिए अभियान चला रही हैं, कोविड प्रभावित देशों से आने वालों पर नजर रखे हुए हैं, सार्वजनिक

सर्वेक्षण और अब प्रवासी श्रमिकों और भूखे लोगों का पता लगाने का सर्वे आदि कर रही हैं। मगर यह बहुत ही चिंताजनक बात है कि हममें से अधिकांश को किसी भी प्रकार के सुरक्षात्मक उपकरण, यहां तक कि मास्क और सैनिटाइजर भी प्रदान नहीं किए गए हैं। कई कर्मियों को तो ‘कोरोना के वाहक’ तक कहा जाता है और उन पर हमला किया जा रहा है। कोविड -19 से संक्रमित होने के मामले लगातार बढ़ रहे हैं। इनमें से कई को अस्पताल में भर्ती होने के बाद कोई भी इलाज करावाना मुश्किल हो रहा है। कोरोना से मरने वाली आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं की कई घटनाएं हैं। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि वित्त मंत्री द्वारा फ्रंटलाइन श्रमिकों के लिए बीमा कवरेज की घोषणा में भी आंगनवाड़ी सेविकाओं और सहायिकाओं का उल्लेख नहीं है। अस्पताल में भर्ती और क्वारेंटाइन खर्च कर्मियों द्वारा ही वहन किया जा रहा है क्योंकि वे बीमा के अंतर्गत नहीं आते हैं। कई राज्यों में महीनों तक वेतन राशि का भुगतान एक साथ नहीं किया जाता है। इस अवधि के दौरान भी, उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में वर्कर्स को बिना किसी पेंशन के सेवानिवृत्त किया जा रहा है।

ज्ञापन के माध्यम से मांग की गई है कि आईसीडीएस के लिए आर्थिक आवंटन को तत्काल दोगुना करो। लाभार्थियों को दिए जाने वाले पोषण आपूर्ति की मात्रा और गुणवत्ता बढ़ाओ। आंगनवाड़ी वर्कर्स व हैल्पर्स को मजदूर के रूप में मान्यता दो, आंगनवाड़ी वर्कर्स को 30,000 और हैल्पर्स को 21000 रू प्रतिमाह न्यूनतम वेतन दो। मिनी आंगनवाड़ी वर्कर्स को समान वेतन का प्रावधान करो। 45 वीं और 46 वीं आईएलसी की सिफारिशों के अनुसार पेंशन, ईएसआई, पीएफ आदि प्रदान करो।

सभी आंगनवाड़ी वर्कर्स व हैल्पर्स के लिए सुरक्षात्मक उपकरण प्रदान करो, विशेषकर स्वास्थ्य क्षेत्र में। नियंत्रण क्षेत्रों और रेड जोन में लगे हुए वर्कर्स के लिए पीपीई किट दो। सभी फ्रंटलाइन श्रमिकों की बार-बार, निरंतर और फ्री कोविड -19 टेस्ट किए जाएं तथा 50 लाख रुपये का बीमा कवर दो जिसमें ड्यूटी पर होने वाली सभी मौतों को कवर किया जाए। पूरे परिवार के लिए कोविड -19 के उपचार का भी कवरेज दिया जाए। पर्याप्त बजट आवंटन के साथ आईसीडीएस को स्थायी बनाओ और इस का किसी भी रूप में निजीकरण नहीं किया जाए। आईसीडीएस में कोई नकद हस्तांतरण नहीं किया जाए। सभी मिनी केंद्रों को पूर्ण केंद्रों में बदलो।

कोविड -19 ड्यूटी में लगे सभी आंगनवाड़ी वर्कर्स व हैल्पर्स के लिए प्रति माह 25,000 रुपये का अतिरिक्त कोविड जोखिम भत्ता दिया जाए। सभी लंबित बकाया राशियों का तुरंत भुगतान किया जाए। ड्यूटी पर रहते हुए संक्रमित हुए सभी लोगों के लिए न्यूनतम दस लाख रुपये का मुआवजा दिया जाए।

आंगनवाड़ियों में ईसीसीई शिक्षा को मजबूत किया जाए व सभी के लिए भोजन, स्वास्थ्य सेवाएं, शिक्षा, आय, नौकरी और आश्रय सुनिश्चित करो। काम के घंटो को बढ़ाकर 8 से 12 घंटे न किया जाए। श्रम कानूनों समाप्त नहीं किया जाए। सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों और सेवाओं का निजीकरण नही किया जाए। कृषि व्यापार और ईसीए पर अध्यादेश तुरंत वापस लिया जाए।

मांग दिवस के प्रदर्शन में सुमन, बबीता, कमलेश, रानी, सीमा, सरोज, अनीता व अन्य कर्मियों ने भाग लिया।