राष्ट्रवाद के बहाने साहित्यv, संस्कृति, कला और विज्ञान को निगलने का माहौल बनाया जा रहा है-वीर भारत तलवार लेखकों को एकजुट होने का आहवान 21 फरवरी तक चलने वाली तीन दिवसीय विश्व पंजाबी कान्फ्रेंस कला भवन चंडीगढ़ में शुरू चंडीगढ़ 19 फरवरी: एक सोची समझी समझी रणनीति के तहत देश के अंदर साहित्य, सांस्कृति, कला और विज्ञान को एक ही रंग में रगने और हर क्षेत्र में असली रूप निगलने का माहौल पैदा किया जा रहा है। यहां तक की बोलने, लिखने और अलग सोच रखने के लिए भी दहशतज़दा किया जा रहा है। इस माहौल का मुकाबला करने के लिए जागरूक और एकजुट होना ही सबसे बड़ा हथियार है। यह विचार जवाहर लाल नेहरू यूनिवर्सिटी दिल्ली के के विद्वान वीर भारत तलवार ने आज पंजाब कला भवन में रंधावा उत्सव 2016 तहत केंदरी पंजाबी लेखक सभा और कौमांतरी ईल्म द्वारा पंजाब कला परिषद के सहयोग से करवाई जा रही विश्व पंजाबी कान्फ्रेंस के पहले दिन उदघाटन समारोह के दौरान मुख्य भाषण देते हुए प्रकट किए। उन्होंने कहा कि साहित्य, विज्ञान, कला और शोध संस्थाओं की वागडोर ऐसे हाथों मे सौंपी जा रही है, जो हर क्षेत्र की सृजनशीलता को खत्म करके एक ठोसी हुई विचारधारा के रंग में रंग सकें। उन्होंने कहा कि ना सिर्फ भारत के इतिहास को तथ्यहीण बातों के ज़रिए प्रचारित किया जा रहा है बल्कि लिखे जा रहे साहित्य को भी एक ही रंग में रंगने के लिए इतिहास मे खोज और तथ्य आधारित कार्यों को निरउत्शाहित किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि एक परिवार के नाम पर कई संगठन खड़े हो रहे हैं जिनकी ना कोई पहचान है और ना ही कोई चेहरा उनकी जिम्मेदारी लेता है, लेकिन वह देश के कोने-कोने में अपनी धक्केशाही से राष्ट्रवाद के नाम उन्होंने आम लोगों को दहशतज़दा कर रहे हैं। नए विचार पैदा होने पर रोक लगाई जा रही है और अपने विचारो को सब पर ज़ब्रदस्ती थोपा जा रहा है। उन्होंने कहा कि 1919 में जब जलियांवाला बाग में कत्लेआम हुआ था तब नोबेल पुरस्कार विजेता रविंदर नाथ टैगोर ने अंग्रज़ों द्वारा दी गई नाईटहुड उपाधि वापस कर दी थी। लेखकों ने अहसनशीलता के खिलाफ सनमान वापस करके उस परंपरा को और मज़बूत किया है और एक लहर खड़ी करने मे मदद की है। उन्होंने अलग-अलग घटनाओं का जि़क्र करते हुए कहा कि इन घटनाओं से मिलने वाले संकेतों को समझने और आम लोगों को जागरूक और एकजुट करने की आवश्यकता है, जिस में हर भाषा के लेखक अहम भूमिका निभा सकते हैं। खचाखच भरे हाल में श्रोताओं ने ज़ोरदार तालियां ने श्री तलवार के विचारों का समर्थन किया। 21 फरवरी तक चलने वाली तीन दिवसीय विश्व पंजाबी कान्फ्रेंस के उदघाटनी समारोह के अध्यक्ष मंडल में डॉ सुरजीत पातर, गुलज़ार सिंह संधू, अजमेर औलख, बलदेव सिंह सड़कनामा, आत्मजीत, मोहन भंडारी, दीपक मनमोहन सिंह और गुरभजन गिल शामिल हुए। पंजाब कला परिषद की चेयरपर्सन बीबी हरजिंदर कौर ने आए हुए मेहमानों का स्वागत किया । कान्फ्रेंस की कार्रवाही आरंभ करते हुए कौमांतरी ईल्म के जनरल सेक्रेटरी एवं हुण के संपादक सुशील दोसांझ ने कान्फ्रेंस के महत्व, विचाराधीन मुद्दों और पहुंच रहे विद्वान सज्जनों के बारे में जानकारी दी। केंदरी पंजाबी लेखक सभा के जनरल सचिव डॉ करमजीत सिंह ने उदघाटनी समारोह के मुख्य वक्ता श्री वीर भारत तलवार की मौजूदा हालात के बारे में की गई खोज के बारे में बताते हुए उनकी विलक्ष्ण शख्सीयत पर प्रकाश डाला। विचार व्यक्त करते हुए प्रसिद्ध शायर डॉ. सुरजीत पातर ने कहा कि लेखक का अंतिम हथियार सम्मान नहीं नहीं कलम होती है। उन्होंने ने अपने सम्मान वापिस किए हैं लेकिन उन्होंने कहा कि अंधेरे को लोहे से नहीं रौशनी की तलवार से काटा जा सकता है। डॉ. पातर ने कहा कि सभी का एक धर्म नहीं हो सकता और ना ही यह किसी पर थोपा जा सकता है लेकिन हमें खौफ में आकर चुप नहीं बैठना चाहिए बल्कि अपनी आवाज़ बुलंद करनी चाहिए। उन्होंने कहा कि खामोशियों में भी रोष का शोर होता है। उन्होंने लेखकों को सलाह दी कि हम लम्बे समय से आत्म मुग्ध हो कर लिख रहे हैं, अब वक्त आ गया है कि हम फिर लोगों के लिए कदम उठाएं। प्रसिद्ध नावल लेखक बलदेव सिंह सड़कनामा ने कहा कि जिस दौर में किसानों की खुदकुशी को फैशन बताया जा रहा है, वह दौर लोगों के जागरूक होने का दौर है। जो लोग कह रहे हैं कि असहनशीलता की बात बंद कर देनी चाहिए उन्हें समझ लेना चाहिए कि इस बारे में चर्चा ही अब शुरू हुई है। नाटककार डॉ. आत्मजीत ने पहले अल्पसंख्यक12ों पर हमले करने के लिए उन्होंने ने संस्कृति पर हमला किया गया लेकिन जब सफलता नहीं मिली तो अब राष्ट्रवाद के नाम पर लोगों को देश भक्ति सिद्ध करने पर मजबूर किया जा रहा है। उन्होंने कहा इस दौर में गिरीश कर्नाड जैसी चर्चित हस्तियों को अपने अलग विचार रखने की वजह से जान से मारने की धमकी दी जा रही है, तब जागरूक और एकजुट होना सबसे अहम है। उन्होंने कहा कि पंजाब में सहनशीलता की सबसे बड़ी मिसाल श्री गुरू ग्रंथ साहिब हैं, उन्हें विचारधारा की दृष्टि लेने वाले कभी अहसनशीलता नहीं हो सकते। वरिष्ठ साहित्यकार और पत्रकार गुलज़ार सिंह संधू ने कहा कि श्री वीर भारत तलवार ने अपने भाषण में जो तथ्य और दलीलें पेश की हैं वह आंखें खोलने वाले हैं। उन्हें हर भाषा में अनुवाद करके लोगों तक पहुंचाना चाहिए। चर्चित कहानीकार मोहन भंडारी ने श्री तलवार के विचारों से सहमति प्रकट करते हुए कहा कि सभी लेखकों को एकजुट होकर एक सुर में बनाए गए माहौल के खिलाफ आवाज़ बुलंद करने का न्यौता दिया। अजमेर औलख ने कहा कि कल्मकारों को हर क्षेत्र के लोगों की आवाज़ बनना होगा तभी आवाज़ दबाने की साजिशें नाकाम हो सकेंगी। डॉ. दीपक मनमोहन सिंह ने कहा कि जिन लोगों ने सम्मान वापिस किए हैं वह सलाम के हकदार है लेकिन जिन्होंने नहीं वापिस किए उनके सामने चुनौती खड़ी है। पंजाबी साहित्य अकादमी, लुधियाना के पूर्व अध्यक्ष और चर्चित शायद गुरभजन सिंह गिल ने कहा कि लेखकों को हर तरह के टैग से मुक्त होकर लोगों से जुड़ना चाहिए और उनकी आवाज़़ बुलंद करनी चाहिए। कवि दर्शन बुट्टर ने कहा कि कान्फ्रेंस के उदघाटनी समारोह में विद्वानों के विचारों और श्रोताओं द्वारा मिल रहे प्रोत्साहन ने साबित कर दिया कि यह मसला गंभीरता से विचार करने वाला है। उन्होंने कहा कि आने वाले दो दिनों में हम सब मिल कर गंभीर चिंतन करेंगे। केंदरी पंजाबी लेखक सभा के अध्यक्ष डॉ लाभ सिंह खीवा ने देश-विदेश से कान्फ्रेंस में शामिल होने के लिए पहुंचे विद्वानों, लेखकों और श्रोताओं का धन्यवाद करते हुए कहा कि इनके आने से ही कान्फ्रेंस का आगाज़ यादगार बन गया है। पंजाबी यूनिवर्सिटी पटियाला के पूर्व वीसी डॉ जोगिंदर सिंह पोआर की अध्यक्षता में हुए दूसरे सैशन के दौरान पंजाबी भाषा की समकालीन चुनौतियां विषय पर विचार देते हुए भाषा विज्ञानी डॉ जोगा सिंह ने कहा कि यह बात पूरी दुनिया में साबित हो चुकी है कि जब तब बच्चे को प्राईमरी शिक्षा मातृ भाषा में ना दी जाए उसका ना तो उचित विकास हो सकता है और ना ही दूसरी भाषाएं सीखने और जिम्मेदार नागरिक बनने में सफल हो सकता है। कान्फ्रेंस में भाग लेने के लिए कैनेडा से जरनैल सिंह, मेजर मांगट, बलबीर कौर संघेड़ा, मिनी ग्रेवाल, अरविंदर कौर, किरपाल सिंह पन्नू, इंगलैंड से दलबीर कौर, अमरजीत सूफी, दलजीत सिंह संधू, गुरमीत सिंह संधू, अमरीका से मंगा बासी, बलविंदर सिंह धनाओ, देहरादून से गुरदीप सिंह, जम्मू-कश्मीर से ख़ालिद हुसैन और बलजीत रैणा, हरियाणा से अमरजीत सिंह, कलकत्ता से हरदेव चौहान, एसजीपीसी सदस्य सुरिंदर कौर के साथ-साथ पंजाब के अलग अलग शहरों से बड़ी संख्या में लेखक और श्रोता पहुंचे। अधिक जानकारी के लिए संपर्क करें-
के बहाने साहित्य, संस्कृति, कला और विज्ञान को निगलने का माहौल बनाया जा रहा है-वीर भारत तलवारराष्ट्रवाद
21 फरवरी तक चलने वाली तीन दिवसीय विश्व पंजाबी कान्फ्रेंस कला भवन चंडीगढ़ में शुरू
चंडीगढ़ 19 फरवरी: एक सोची समझी समझी रणनीति के तहत देश के अंदर साहित्य, सांस्कृति, कला और विज्ञान को एक ही रंग में रगने और हर क्षेत्र में असली रूप निगलने का माहौल पैदा किया जा रहा है। यहां तक की बोलने, लिखने और अलग सोच रखने के लिए भी दहशतज़दा किया जा रहा है। इस माहौल का मुकाबला करने के लिए जागरूक और एकजुट होना ही सबसे बड़ा हथियार है। यह विचार जवाहर लाल नेहरू यूनिवर्सिटी दिल्ली के के विद्वान वीर भारत तलवार ने आज पंजाब कला भवन में रंधावा उत्सव 2016 तहत केंदरी पंजाबी लेखक सभा और कौमांतरी ईल्म द्वारा पंजाब कला परिषद के सहयोग से करवाई जा रही विश्व पंजाबी कान्फ्रेंस के पहले दिन उदघाटन समारोह के दौरान मुख्य भाषण देते हुए प्रकट किए। उन्होंने कहा कि साहित्य, विज्ञान, कला और शोध संस्थाओं की वागडोर ऐसे हाथों मे सौंपी जा रही है, जो हर क्षेत्र की सृजनशीलता को खत्म करके एक ठोसी हुई विचारधारा के रंग में रंग सकें। उन्होंने कहा कि ना सिर्फ भारत के इतिहास को तथ्यहीण बातों के ज़रिए प्रचारित किया जा रहा है बल्कि लिखे जा रहे साहित्य को भी एक ही रंग में रंगने के लिए इतिहास मे खोज और तथ्य आधारित कार्यों को निरउत्शाहित किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि एक परिवार के नाम पर कई संगठन खड़े हो रहे हैं जिनकी ना कोई पहचान है और ना ही कोई चेहरा उनकी जिम्मेदारी लेता है, लेकिन वह देश के कोने-कोने में अपनी धक्केशाही से राष्ट्रवाद के नाम उन्होंने आम लोगों को दहशतज़दा कर रहे हैं। नए विचार पैदा होने पर रोक लगाई जा रही है और अपने विचारो को सब पर ज़ब्रदस्ती थोपा जा रहा है। उन्होंने कहा कि 1919 में जब जलियांवाला बाग में कत्लेआम हुआ था तब नोबेल पुरस्कार विजेता रविंदर नाथ टैगोर ने अंग्रज़ों द्वारा दी गई नाईटहुड उपाधि वापस कर दी थी। लेखकों ने अहसनशीलता के खिलाफ सनमान वापस करके उस परंपरा को और मज़बूत किया है और एक लहर खड़ी करने मे मदद की है। उन्होंने अलग-अलग घटनाओं का जि़क्र करते हुए कहा कि इन घटनाओं से मिलने वाले संकेतों को समझने और आम लोगों को जागरूक और एकजुट करने की आवश्यकता है, जिस में हर भाषा के लेखक अहम भूमिका निभा सकते हैं। खचाखच भरे हाल में श्रोताओं ने ज़ोरदार तालियां ने श्री तलवार के विचारों का समर्थन किया।
21 फरवरी तक चलने वाली तीन दिवसीय विश्व पंजाबी कान्फ्रेंस के उदघाटनी समारोह के अध्यक्ष मंडल में डॉ सुरजीत पातर, गुलज़ार सिंह संधू, अजमेर औलख, बलदेव सिंह सड़कनामा, आत्मजीत, मोहन भंडारी, दीपक मनमोहन सिंह और गुरभजन गिल शामिल हुए। पंजाब कला परिषद की चेयरपर्सन बीबी हरजिंदर कौर ने आए हुए मेहमानों का स्वागत किया । कान्फ्रेंस की कार्रवाही आरंभ करते हुए कौमांतरी ईल्म के जनरल सेक्रेटरी एवं हुण के संपादक सुशील दोसांझ ने कान्फ्रेंस के महत्व, विचाराधीन मुद्दों और पहुंच रहे विद्वान सज्जनों के बारे में जानकारी दी। केंदरी पंजाबी लेखक सभा के जनरल सचिव डॉ करमजीत सिंह ने उदघाटनी समारोह के मुख्य वक्ता श्री वीर भारत तलवार की मौजूदा हालात के बारे में की गई खोज के बारे में बताते हुए उनकी विलक्ष्ण शख्सीयत पर प्रकाश डाला।
विचार व्यक्त करते हुए प्रसिद्ध शायर डॉ. सुरजीत पातर ने कहा कि लेखक का अंतिम हथियार सम्मान नहीं नहीं कलम होती है। उन्होंने ने अपने सम्मान वापिस किए हैं लेकिन उन्होंने कहा कि अंधेरे को लोहे से नहीं रौशनी की तलवार से काटा जा सकता है। डॉ. पातर ने कहा कि सभी का एक धर्म नहीं हो सकता और ना ही यह किसी पर थोपा जा सकता है लेकिन हमें खौफ में आकर चुप नहीं बैठना चाहिए बल्कि अपनी आवाज़ बुलंद करनी चाहिए। उन्होंने कहा कि खामोशियों में भी रोष का शोर होता है। उन्होंने लेखकों को सलाह दी कि हम लम्बे समय से आत्म मुग्ध हो कर लिख रहे हैं, अब वक्त आ गया है कि हम फिर लोगों के लिए कदम उठाएं।
प्रसिद्ध नावल लेखक बलदेव सिंह सड़कनामा ने कहा कि जिस दौर में किसानों की खुदकुशी को फैशन बताया जा रहा है, वह दौर लोगों के जागरूक होने का दौर है। जो लोग कह रहे हैं कि असहनशीलता की बात बंद कर देनी चाहिए उन्हें समझ लेना चाहिए कि इस बारे में चर्चा ही अब शुरू हुई है। नाटककार डॉ. आत्मजीत ने पहले अल्पसंख्यक12ों पर हमले करने के लिए उन्होंने ने संस्कृति पर हमला किया गया लेकिन जब सफलता नहीं मिली तो अब राष्ट्रवाद के नाम पर लोगों को देश भक्ति सिद्ध करने पर मजबूर किया जा रहा है। उन्होंने कहा इस दौर में गिरीश कर्नाड जैसी चर्चित हस्तियों को अपने अलग विचार रखने की वजह से जान से मारने की धमकी दी जा रही है, तब जागरूक और एकजुट होना सबसे अहम है। उन्होंने कहा कि पंजाब में सहनशीलता की सबसे बड़ी मिसाल श्री गुरू ग्रंथ साहिब हैं, उन्हें विचारधारा की दृष्टि लेने वाले कभी अहसनशीलता नहीं हो सकते।
वरिष्ठ साहित्यकार और पत्रकार गुलज़ार सिंह संधू ने कहा कि श्री वीर भारत तलवार ने अपने भाषण में जो तथ्य और दलीलें पेश की हैं वह आंखें खोलने वाले हैं। उन्हें हर भाषा में अनुवाद करके लोगों तक पहुंचाना चाहिए। चर्चित कहानीकार मोहन भंडारी ने श्री तलवार के विचारों से सहमति प्रकट करते हुए कहा कि सभी लेखकों को एकजुट होकर एक सुर में बनाए गए माहौल के खिलाफ आवाज़ बुलंद करने का न्यौता दिया।
अजमेर औलख ने कहा कि कल्मकारों को हर क्षेत्र के लोगों की आवाज़ बनना होगा तभी आवाज़ दबाने की साजिशें नाकाम हो सकेंगी। डॉ. दीपक मनमोहन सिंह ने कहा कि जिन लोगों ने सम्मान वापिस किए हैं वह सलाम के हकदार है लेकिन जिन्होंने नहीं वापिस किए उनके सामने चुनौती खड़ी है।
पंजाबी साहित्य अकादमी, लुधियाना के पूर्व अध्यक्ष और चर्चित शायद गुरभजन सिंह गिल ने कहा कि लेखकों को हर तरह के टैग से मुक्त होकर लोगों से जुड़ना चाहिए और उनकी आवाज़़ बुलंद करनी चाहिए। कवि दर्शन बुट्टर ने कहा कि कान्फ्रेंस के उदघाटनी समारोह में विद्वानों के विचारों और श्रोताओं द्वारा मिल रहे प्रोत्साहन ने साबित कर दिया कि यह मसला गंभीरता से विचार करने वाला है। उन्होंने कहा कि आने वाले दो दिनों में हम सब मिल कर गंभीर चिंतन करेंगे।
केंदरी पंजाबी लेखक सभा के अध्यक्ष डॉ लाभ सिंह खीवा ने देश-विदेश से कान्फ्रेंस में शामिल होने के लिए पहुंचे विद्वानों, लेखकों और श्रोताओं का धन्यवाद करते हुए कहा कि इनके आने से ही कान्फ्रेंस का आगाज़ यादगार बन गया है।
पंजाबी यूनिवर्सिटी पटियाला के पूर्व वीसी डॉ जोगिंदर सिंह पोआर की अध्यक्षता में हुए दूसरे सैशन के दौरान पंजाबी भाषा की समकालीन चुनौतियां विषय पर विचार देते हुए भाषा विज्ञानी डॉ जोगा सिंह ने कहा कि यह बात पूरी दुनिया में साबित हो चुकी है कि जब तब बच्चे को प्राईमरी शिक्षा मातृ भाषा में ना दी जाए उसका ना तो उचित विकास हो सकता है और ना ही दूसरी भाषाएं सीखने और जिम्मेदार नागरिक बनने में सफल हो सकता है।
कान्फ्रेंस में भाग लेने के लिए कैनेडा से जरनैल सिंह, मेजर मांगट, बलबीर कौर संघेड़ा, मिनी ग्रेवाल, अरविंदर कौर, किरपाल सिंह पन्नू, इंगलैंड से दलबीर कौर, अमरजीत सूफी, दलजीत सिंह संधू, गुरमीत सिंह संधू, अमरीका से मंगा बासी, बलविंदर सिंह धनाओ, देहरादून से गुरदीप सिंह, जम्मू-कश्मीर से ख़ालिद हुसैन और बलजीत रैणा, हरियाणा से अमरजीत सिंह, कलकत्ता से हरदेव चौहान, एसजीपीसी सदस्य सुरिंदर कौर के साथ-साथ पंजाब के अलग अलग शहरों से बड़ी संख्या में लेखक और श्रोता पहुंचे